Sunday 25 September 2011

सभी स्कूलों में उर्दू को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने की मांग

          नई दिल्ली। दिल्ली के स्कूलों में उर्दू का स्तर तेजी से गिर रहा है परंतु सरकार इस पर बिल्कुल भी गंभीर नजर नहीं आ रही हैै, क्योंकि लम्बे समय से दिल्ली के स्कूलों में उर्दू शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं व पर्याप्त मात्रा में उर्दू की किताबें भी मौजूद नहीं हैं। इस पर नई पीढ़ी-नई सोच संस्था ने चिंता व्यक्त करते हुए उप राज्यपाल, शीला दीक्षित (मुख्यमंत्री), अरविंदर सिंह लवली (शिक्षा मंत्री), शिक्षा निदेशक, उप शिक्षा निदेशक, सेक्रेटरी(उर्दू अकादमी) को पत्र लिखकर सभी स्कूलों में उर्दू को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने व जल्द से जल्द उर्दू षिक्षकों की नियुक्त करने की मांग की है।
          संस्था के अध्यक्ष श्री साबिर हुसैन ने कहा कि सभी स्कूलों में उर्दू को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए व पर्याप्त मात्रा में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। आज के समय में उर्दू का स्तर तेजी से गिर रहा है,क्योंकि अधिकतर स्कूलों में उर्दू शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं व पर्याप्त मात्रा में उर्दू की किताबें भी मौजूद नहीं हैं।
          उर्दू को हिन्दी के बाद दूसरा स्थान दिया गया है परंतु इसकी ओर कोई ध्यान देने को तैयार नहीं है। सब इस पर सिर्फ खानापूर्ति करते हैं मगर इस पर कोई ठोस कार्यवाही करने को तैयार नहीं है। यदि समय-समय पर स्कूलों में सर्वे आदि हो तो इस भाषा को जल्द से जल्द बुलंदी की ओर ले जाया जा सकता है।
          साबिर हुसैन ने आगे बताया कि आज लगभग 1500-2000 पद उर्दू शिक्षकों के खाली हैं परंतु इनकी भरपाई अभी तक नहीं हो पाई है जो विद्यालय उर्दू मीडियम थे उन्हें भी खत्म कर दिया गया है। जिसका खामियाजा बच्चों को भरना पड़ता है।
          वहीं राजकीय सर्वोदय सह-शिक्षा उच्च माध्यमिक विद्यालय, बुलंद मस्जिद, शास्त्री पार्क, दिल्ली यह स्कूल पहली से पांचवीं कक्षा तक उर्दू मीडियम है परंतु पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को उर्दू पढ़ाना वाला अभी तक कोई भी शिक्षक मौजूद नहीं है। जिस कारण यहां के बच्चों के अभी तक उर्दू की वर्णमाला (उर्दू की तख्ती) के बारे में भी मालूम नहीं है।
          यहां पर लगभग 2500 बच्चें उर्दू पढ़ने वाले हैं मगर अभी तक कोई स्थायी शिक्षक मौजूद नहीं लेकिन यहां पर 25-30 बच्चें ही संस्कृत पढ़ने वाले हैं उनके लिए संस्कृत की स्थायी शिक्षक मौजूद है। क्या यह उर्दू पढ़ने वाले बच्चों के साथ नाइंसाफी नहीं तो और क्या है?
          क्या सरकार इस पर जान बूझकर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है, क्योंकि लम्बे समय से दिल्ली के स्कूलों में उर्दू के शिक्षकों की कमी है परंतु सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। सरकार से पूछा जाता है कि उर्दू शिक्षकों की भर्ती कब तक की जाएगी तो उनका दो टूक जवाब होता है कि उर्दू अकादमी को इसकी जिम्मेदारी दे रखी है मगर उर्दू अकादमी से पता चलता है कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है।
          साबिर हुसैन ने मांग की है कि सभी स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति जल्द से जल्द की जाए, उर्दू को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए व उर्दू की किताबें पूरी तरह से मौजूद कराई जाए, उर्दू को पहली कक्षा से ही अनिवार्य रूप से लागू किया जाए, जो स्कूल उर्दू मीडियम थे उन्हें खत्म न किया जाए बल्कि वहां ज्याद से ज्याद उर्दू शिक्षक भेजे जाएं, जल्द से जल्द उर्दू का सिलेबस स्कूलों को भेजा जाए व शिक्षा निदेशालय की साइड www.edudel.nic.in पर भी डाला जाए।

Monday 12 September 2011

डीटीसी बसों में हिन्दी डिसप्ले चलाने की मांग

नई दिल्ली। राजधानी में परिवहन साधन का उपयोग करने वाला एक बड़ा तबका आम आदमी का होता है और जबकि इन बसों में लगे इलैक्ट्रानिक डिस्प्ले अंग्रेजी में सूचना प्रदर्शित करते हैं जिससे हिन्दी भाषी लोगों को अंग्रेजी समझने में मुश्किल होती है। नई पीढ़ी-नई सोच संस्था ने इस जन समस्या पर आवाज उठाते हुए दिल्ली परिवहन मंत्री अरविन्दर सिंह लवली को पत्र लिखा।
इस पत्र के माध्यम से बताया कि बसों में लगे डिसप्ले बोर्ड अंग्रेजी में चलित या लगे होने के कारण अनपढ़ लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
इसके साथ ही डीटीसी के कंडक्टर व ड्राइवर भी यात्रियों से बदतमीजी करते हैं व अपनी मर्जी से गेट खोलते व बंद करते हैं। स्टैंड पर गाड़ी नहीं रोकते खासकर लालकिले के स्टैंड पर गाड़ी न रोककर या तो गाड़ी आगे रोकते हैं या पीछे रोकते हैं। इसके साथ एक और समस्या पैदा होती है कि लाल किले के स्टैंड पर बस होती है और टिकट पिछले स्टैंड का मिलता है जब बस लाल किला पार कर जाती है तब उनका स्टैंड लाल किले का शुरू होता है जिसका खामियाजा यात्रियों को भरना पड़ता है क्योंकि यात्रियों को पता ही नहीं होता कि टिकट किस स्टैंड से कटा है।
आगे बताया है कि बस अड्डे से लेकर आईटीओ तक ज्यादातर बसें एसी की ही चलती हैं जबकि नान एसी बसें कम ही चलती है।नान एसी न मिलने के कारण यात्रियों को काफी परेशानी होती है व मजबूरी में उन्हें एसी बसों में यात्रा करना पड़ती है।नई कलस्टर बसों में सुविधा फिर अच्छी हैं। कलस्टर बसों में कंडक्टर हर स्टैंड पर बस रुकवाकर आवाज लगाते हैं व अगला स्टाप आने वाला है बोलते हैं व उसमें भी अगले स्टाप की उद्घोषणा होती है मगर डीटीसी बस में ऐसा कुछ नहीं है। डीटीसी बसों में भी ऐसी सुविधा हैं मगर उसका इस्तेमाल नहीं किया जाता व यात्रियों के साथ भी दुर्व्यवहार किया जाता है।
संस्था ने परिवहन मंत्री से अनुरोध किया है कि डीटीसी की लो फ्लोर बसों की सभी सुविधाएं शुरू कर दी जाएं व ड्राइवर व कंडक्टरों को भी हिदायत दी जाए कि वह हर स्टैंड पर बस रोककर आवाज लगाएं व यात्रियों को परेशान न करें।

Wednesday 7 September 2011

दिल्ली हाईकोर्ट विस्फोट पर संस्था ने कड़ी निंदा की

दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नम्बर 5 के सामने हुए धमाके में 11 की मौत व लगभग 91 के घायल होने पर नई पीढ़ी-नई सोच संस्था के अध्यक्ष साबिर हुसैन ने कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि खुफिया तंत्र व सुरक्षा एजेंसी का आपसी तालमेल न होने के कारण ही यह घटना हुई है क्योंकि 25 मई अर्थात् 3 महीने 13 दिन पहले भी दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नम्बर 7 के सामने एक हल्का विस्फोट हो चुका है। उस विस्फोट के बाद भी सरकार व सुरक्षा एजेंसी ने उससे कोई सबक नहीं लिया जिसका नतीजा आज हमारे सामने है। यदि सुरक्षा एजेंसी व खुफिया तंत्र सही तरीके से कार्य करे तो हमारे देश में किसी भी तरह की अपिय घटना न हो।
साबिर हुसैन ने कहा कि मुझे यह समझ नहीं आता कि जब खुफिया तंत्र, सुरक्षा एजेंसियों, सरकार आदि को पता चल जाता है कि देश में अपिय घटना घटने वाली है तो वह पहले से क्यों नहीं सचेत होते हैं। घटना घटने के बाद ही लोग क्यों कहते हैं कि इसकी सूचना पहले से थी। कहीं न कहीं हमारी सुरक्षा व्यवस्था, खुफिया तंत्र आदि में कमी है जिसका खामियाजा हम सबको भरना पड़ता है। हम लोगों को चाहिए कि हम सदैव सचेत रहें और यदि कोई अपिय घटना होती है तो हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए बल्कि एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आना चाहिए। जिससे कम से कम नुकसान हो।

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