Monday 15 July 2013

नई पीढ़ी-नई सोच संस्था ने सरकार पर लगाया उपेक्षा का आरोप

नई दिल्ली। आज नई पीढ़ी-नई सोच संस्था के केंद्रीय कार्यालय में बैठक आयोजित की गई। जिसकी अध्यक्षता संस्था के संस्थापक व अध्यक्ष श्री साबिर हुसैन ने की। इस बैठक में कुछ मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। वह मुद्दे थे कालोनी में सफाई व्यवस्था का चौपट होना, कूड़े घर पर भूमाफियाओं की नजर, स्कूलों में बच्चों के प्रवेश न होना, दिल्ली सरकार का शिक्षा के प्रति लापरवाही आदि।
बैठक की अध्यक्षता करते हुए साबिर हुसैन ने कहा कि हम सफाई, स्कूलों में बच्चों के प्रवेश आदि के लिए पत्र लिखकर अवगत कराएंगे। यदि इसके बाद भी कोई कार्य नहीं होता है तो इसके लिए संघर्ष करेंगे और सरकार या संबंधित विभाग के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे।
उन्होंने कहा कि गत दिनों पहले भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल ने सरकारी स्कूलों को लेकर जो खुलासा किया है उससे दिल्ली सरकार में हाहाकार मचा हुआ है जबकि उनके कुछ आंकड़ों से दिल्ली सरकार मुंह नहीं मोड़ सकती।
अध्यक्ष साबिर हुसैन ने कहा कि दिल्ली सरकार को उनके द्वारा पेश किए गए आंकड़ों में कमी तो नजर आई परन्तु हकीकत से वह मुंह मोड़ रही हैं।
श्री गोयल के सभी आरोप सही नहीं हैं परन्तु कुछ आरोप गलत भी नहीं है। दिल्ली सरकार के कई स्कूल नर्सरी से शुरू होते हैं और 10वीं या 12वीं तक हैं वहां के बच्चों को भी पढ़ना लिखना नहीं आता। जब इसके बारे में प्रधानाचार्यों से पूछा गया तो उनका कहना है कि हमारे पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है। हम तो सिर्प इन्हें घेर रहे हैं।
बहुत सारे स्कूल ऐसे हैं जिनमें मिड डे मिल बांटने के बाद बच्चे कम होना शुरू हो जाते हैं इनमें अधिकतर स्कूल लड़कों के हैं। यह स्कूल सीलमपुर, जाफराबाद,  मौजपुर, गोकुलपुरी, शास्त्राr पार्प, गौतमपुरी आदि अधिकतर स्कूल जमानापार या गांव के हैं।
एक-एक स्कूल में छात्र-शिक्षक अनुपात 1ः70 लगभग है। उस पर भी अलग काम जैसे आरटीआई का जवाब, जनगणना, पीओ आफिस जाना आदि कार्य हैं। वह कब पढ़ाएंगे जब उन्हें समय मिलेगा परन्तु समय तो मिलेगा ही नहीं।
पिछले काफी समय से स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है सिर्प स्थायी शिक्षकों को एक स्कूल से दूसरे स्कूलों में भेजा जा रहा है।
अस्थायी शिक्षकों की भर्ती जुलाई में शुरू होती है और अंतिम जुलाई तक चलती है इससे पूरा जुलाई माह पढ़ाई नहीं हो पाती।
बच्चों को पास करना मजबूरी हो गया क्योंकि उन्हें कई तरह के नम्बर दिए जाते हैं जैसे हाजिरी, वर्दी अच्छी है या नहीं, नहा कर आया है या नहीं आदि उसमें बच्चों को पूरे नम्बर मिल जाते हैं या फिर थोड़े से कम जैसे 40 में से 36, 32, 38 आदि अंक मिल जाते हैं। उसका उन्हें फायदा मिल जाता है और वह पास होते हैं। शिक्षक पूरे साल इसी कार्य में लगे रहते हैं। कभी यह टेस्ट तो कभी यह एक्टिविटी आदि।
जब से 10वीं की परीक्षा स्कूलों में होने लगी है तब से बच्चे ज्यादा पास होने लगे हैं क्योंकि वहां उन्हें नकल करने का पूरा मौका मिलता है। इसमें उनका नुकसान ज्यादा होता है जो रोजाना स्कूल जाते हैं और होशियार हैं।
इसमें ग्रेड प्रणाली भी बिना पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को फायदा पहुंचा रही है क्योंकि 10 अंक वाला भी एक ग्रेड में और 1 अंक वाला भी एक ग्रेड में तो फर्प कहां रहा। नुकसान पूरी तरह पूरे साल पढ़ने वाला का हुआ।

vir arjun 15-7-2013


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